आपकी रचना बहुत सुन्दर है.. शायद यही कारण रहा मेरे मन में उठी जिज्ञासा का ..क्या इसे और भी कम शब्दों में प्रस्तुत किया जा सकता है? इसी प्रयास में यह पंक्तियाँ निकल आयीं .. इसके अतिरिक्त भी कई प्रयोग हो सकते हैं.. kabhi main bhi aapke jaisa hua krta tha Sanjeev aisa hi bhola udas apne mein khoya hua lekin kavita ki duniya ne mujhe aamool chool badal diya ..
संजीव कुमार बब्बर कुलपति कार्यालय इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय मैदान गढ़ी नई दिल्ली - 110068 दूरभाष: 9810618074 email: skbabbar@hotmail.com
बहुत सुन्दर !! मनोभावों को बहुत सुन्दर शब्द दिए हैं।
ReplyDeletewaah ... bahut khubsurat rachna
ReplyDeleteआपकी रचना बहुत सुन्दर है.. शायद यही कारण रहा मेरे मन में उठी जिज्ञासा का ..क्या इसे और भी कम शब्दों में प्रस्तुत किया जा सकता है? इसी प्रयास में यह पंक्तियाँ निकल आयीं .. इसके अतिरिक्त भी कई प्रयोग हो सकते हैं.. kabhi main bhi aapke jaisa hua krta tha Sanjeev aisa hi bhola udas apne mein khoya hua lekin kavita ki duniya ne mujhe aamool chool badal diya ..
ReplyDeleteआँसू बोलते हैं
कस लो होंट
थाम लो सांसे
झुका लो आँखें
इन पर नहीं
किसी का बस
भेद खोलते हैं
आँसू बोलते हैं
मूल रचना: संजीव कुमार बब्बर
रूपांतरण :श्याम जुनेजा