Wednesday, February 3, 2010

अब ओर नहीं

कहता है मन बस
अब ओर नहीं
हा ओर नहीं
छोड़ दे दुनिया
जीना अब और नहीं
हा ओर नहीं
जी कर क्या करू
अपने लिए तुम्हारे लिए
कहता है मन बस
अब ओर नहीं
शब्दों के है जहा जाल बिछे
अविश्वास ओर धोखा जहा हर जगह दिखे
वहा अब ओर नहीं
हा ओर नहीं
प्रेम जहा बिकता फिरे
इंसानियत जहा सब छोड़ चले
वहा बब्बर कैसे रहे
कहता है मन बस
अब ओर नहीं
हा ओर नहीं

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