Friday, October 23, 2009
आंधी
कल रात की आंधी ने
एक चिंगारी से
इस सुलगते हुए दिल
को जला डाला
जो राख बनी थी उसे
हवा ने उडा डाला
कल तुमने अपने चमन से
एक भँवरे को भगा डाला
जो सिर्फ गम पीता था
उसे तुने जहर पिला डाला
कल की आंधी ने मेरा
सब कुछ उडा डाला
जो कुछ मेरा था उसे
पडोसी के यहाँ पंहुचा डाला
कल की आंधी ने
एक आदमी को
जानवर बना डाला और
उस जानवर को तुने जला डाला
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हाँ! यहाँ कविता की संभावना है. . लेकिन कसो! व्यर्थ से मुक्त करो इसे! शब्द मोह और दोहराव कविता को मारता है
ReplyDeleteआज इतना ही फिर मिलेंगे