Friday, October 23, 2009

शुभ बेला


दिवाली की शुभ बेला पर
आओ हम सब मिलकर
एक दीप जलाए
जो सदैव इमानदारी
प्रेम प्रीत और
शिक्षा का उजियारा फैलाए
जो हटा दे
जात पात और
उंच नीच का अंधियारा
इस निश्छल मन से
दिवाली की शुभ बेला पर
आओ हम सब मिलकर
एक ऐसा दीप जलाए

3 comments:

  1. उधार की चीज़ों के लिए कविता में कोई जगह नहीं कविता आपसे आपको मांगती है पूरे का पूरा बिना लिहाज़ के ... आपकी कविता में आपके अंतर्मन की झिलमिल दिखनी चाहिए

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  2. इस निश्छल मन से
    दिवाली की शुभ बेला पर
    आओ हम सब मिलकर
    एक ऐसा दीप जलाए
    sundar bhav

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