काली अँधेरी रात है
अँधेरा ही अँधेरा है
चले जा रहे है
सभी चले जा रहे है
मै भी चला जा रहा हूँ
जहा सभी चले जा रहे है
किसी को मालूम नहीं
कहा जा रहे है
मुझे भी मालूम नहीं
कहा जा रहा हूँ
किसी को मालूम नहीं
फरक अँधेरे और उजज्ले का
काली अँधेरी रात है
Wednesday, February 3, 2010
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क़ेवेल एक शब्द बिंदास
ReplyDeleteक़ेवेल एक शब्द बिंदास
ReplyDeletebahut sunder likhte hai aap
ReplyDeleteMindblowing Poem sir ji........waise gayab kidhar ho gaye hai aap?
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