Wednesday, February 3, 2010

चले जा रहे है

काली अँधेरी रात है
अँधेरा ही अँधेरा है
चले जा रहे है
सभी चले जा रहे है
मै भी चला जा रहा हूँ
जहा सभी चले जा रहे है
किसी को मालूम नहीं
कहा जा रहे है
मुझे भी मालूम नहीं
कहा जा रहा हूँ
किसी को मालूम नहीं
फरक अँधेरे और उजज्ले का
काली अँधेरी रात है

4 comments:

  1. क़ेवेल एक शब्द बिंदास

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  2. क़ेवेल एक शब्द बिंदास

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  3. bahut sunder likhte hai aap

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  4. Mindblowing Poem sir ji........waise gayab kidhar ho gaye hai aap?

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