Friday, September 25, 2009
क्यों फैला है भ्रष्टाचार
अपने मन में अक्सर सोचा करता हूँ कई बार
अपने देश में ही क्यों फैला है इतना भ्रष्टाचार
नेता और अधिकारी सारे क्यों हैं मालामाल
मेहनतकश और मज़दूर देश का हो गया कंगाल
वीर सिपाही सीमा पर करता यही पुकार
अपने देश में ही क्यों फैला है इतना भ्रष्टाचार
अनेक धर्म हैं अनेक भाषा, फिर भी एक तिरंगा
हिन्दू और मुस्लिम के बीच में क्यों होता है दंगा
मैंने देखा इन्सानियत को बिकते बीच बाज़ार
अपने देश में ही क्यों फैला है इतना भ्रष्टाचार
ग्यारह बच्चे घर में हैं पर है जनगणना अधिकारी
औरों को शिक्षा देते कहाँ गई अकल तुम्हारी
झट से बोले सब ज़ायज, है यहाँ अपनी है सरकार
अपने देश में ही क्यों फैला है इतना भ्रष्टाचार
बचपन में पापा कहते थे ईश्वर भाग्य विधाता है
जन्म देने वाली माँ से बढ़कर अपनी भारत माता है
आज ईमानदार और सत्यवादी बहुत हो चुका लाचार
अपने देश में ही क्यों फैला है इतना भ्रष्टाचार
कभी तो मानव जागेगा लिए बैठा यही आस
करेगा सो भरेगा तू क्यों है बब्बर उदास
साई कहते इस जग में मतलब का व्यवहार
अपने देश में ही क्यों फैला है इतना भ्रष्टाचार
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sunder rachna sanjeev bhai
ReplyDeletehamare desh ki tasveer kuchh aise hi nazar aati hai aajkal
बहुत सुन्दर रचना है।इस कविता मे आपके मन का देश प्रेम झलकता है।अच्छा लगा।
ReplyDeletea very good poem. i think this is one of the first class poems that we can have for brashtachar.
ReplyDeleteawesome poem 2 be appreciated
ReplyDeleteबहुत सूंदर।। अधभुत।। शब्द ही नहीं है इस कविता की सुंदरता का विवरण करने के लिए।।।
ReplyDeleteperfect
ReplyDeletenice very useful
ReplyDeletevery hot and sexy
ReplyDeleteबेस्ट
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